Tuesday, December 21, 2010

लम्हे











आपकी याद में जिये जाएँ ,
गुजरे लम्हों को हम पिये जाएँ ।

उन लम्हों की वफ़ा कम न हुई ,
आज भी उतने ही अपने है, मेरे ।
इस अपनेपन में ही मरें जाएँ ,
उन लम्हों में बस जिये जाएँ ।

आपकी याद में जिये जाएँ ....

आज की ये खुशी , मेरी दरअसल ,
बीते लम्हों से ली उधारी है,
गम में जीने से तो बेहतर यारों,
उनके कर्जों तले दबे जाएँ ।

आपकी याद में जिये जाएँ ....
..........रजनीश (02.09.93)

2 comments:

Sunil Kumar said...

जीने कि चाहत में उधार की ख़ुशी माजरा समझ में नहीं आया सोचने के टिप्पणी दूंगा....

संगीता पुरी said...

इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....