Tuesday, March 7, 2017

मैं तो चलता जाता हूँ


मैं तो चलता जाता हूँ 
समय की धुन में
समय की सुनता 
आगे बढ़ता जाता हूँ 
मैं तो चलता जाता हूँ 

कहाँ से चला पता नहीं 
कहाँ जा रहा पता नहीं 
कहाँ हमसफर पता नहीं 
कहाँ है रास्ता पता नहीं 
फिर भी चलता जाता हूँ 
आशाओं की माला बुनता 
आगे बढ़ता जाता हूँ 
मैं तो चलता जाता हूँ 

क्या है सच ये पता नहीं 
क्या झूठ है पता नहीं 
क्या  सही था पता नही 
क्या गलत था पता नहीं
फिर भी चलता जाता हूँ 
भीतर की आवाज मैं सुनता
आगे बढ़ता जाता हूँ 
मैं तो चलता जाता हूँ 

क्या है धोखा पता नहीं 
कोई खोजे मौका पता नहीं 
कौन है अपना पता नहीं 
कौन सहारा पता नही 
फिर भी चलता जाता हूँ 
ढाई आखर प्रेम के पढ़ता
आगे बढ़ता जाता हूँ 
मैं तो चलता जाता हूँ 

मैं तो चलता जाता हूँ
                                                 

5 comments:

Anita said...

चरैवेति चरैवेति...एक न एक दिन मंजिल मिल ही जाएगी..सुंदर रचना !

Onkar said...

सुन्दर रचना

तरूण कुमार said...

सुन्दर शब्द रचना

अभिजीत प्रकाश अग्निहोत्री said...

बहूत ही सुन्दर.......

अभिजीत प्रकाश अग्निहोत्री said...

बहूत ही सुन्दर.......

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....